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वोकेशनल टीचर के समर्थन में उतरे: सुमन प्रजापति

हमीरपुर/विवेकानंद वशिष्ठ :-   वोकेशनल टीचर कंपनियों से छुटकारा पाने और सरकार को आगाह करने के लिए चौड़ा मैदान शिमला में प्रदेश के  करीब 1100 सरकारी स्कूलों के 2000 से अधिक  टीचरों का अनिश्चितकालीन धरना-प्रदर्शन जारी है। वोकेशनल ट्रेनर के समर्थन में अब समाजसेवी सुमन प्रजापति भी मैदान में उतर गए हैं। उन्होंने  जन हितैषी सुक्खू सरकर से  मांग  की है कि  आउटसोर्स वोकेशनल टीचरों को कंपनियों से निजात और स्थाई नीति बनाई जाए।
उन्होंने बताया कि  जिस तरह आजादी से पहले ईस्ट इंडिया कंपनी ने  देश को गुलाम बनाकर भारतियों का शोषण करती थी। उसी तरह ये कंपनियां चंद सिक्कों  का  लालच देकर  प्रदेश को खोखला कर रहीं  हैं । इन  सिक्कों की चमक के लालच में  शिक्षा विभाग इनके आगे घुटने टेकता नजर आ रहा है। कंपनियां  मिली भगत से शिक्षा  पर कब्जा जमाकर  विभाग   को गुलाम बनाने के फिराक में हैं। पहले ही देश में शिक्षा गुणवत्ता की रैंकिंग में प्रदेश 21 वें पायदान पर लुढ़क गया है। क्या  शिक्षा विभाग के कंधे  इतने कमजोर हैं की इनको कंपनियों के सहारे  जरूरत पड़ रही है? या फिर विभाग की सोच को जंग लग गया है? या फिर सरकार को प्रदेश के युवाओं की काबलियत पर कोई शक है ?  यदि सरकार ने समय रहते कड़े फैसले नहीं लिए गए तो वो दिन दूर नहीं जब  शिक्षा विभाग को ईस्ट इंडिया कंपनी की तरह ये कंपनियां चलाएंगी और विभाग एक दूसरे  का मुंह ताकता रहा जायेगा । इसी बात का नतीजा है की दिन प्रतिदिन लोगों का रुझान सरकारी विद्यालयों से उठकर प्राइवेट स्कूलों  की तरफ बढ़ रहा है । उन्होंने आप बीती में बताया कि  वो अगस्त 2015  से लेकर  फरवरी 2018 तक वोकेशनल टीचर रह चुके हैं। ढाई साल के कार्यकाल में उन्होंने लाहुल -स्पीति , मंडी,  कांगड़ा में सेवा देने  के उपरांत  सिरमौर भेजा था। परन्तु  कंपनी के इन्हीं  तुगलकी फरमान, समय पर सैलरी न देना और पक्षपात रवैये  से तंग आकर  फरवरी 2018  जॉब छोड़नी  पडी  थी ।
आपको बता दे कि  सुमन प्रजापति ने कंपनियों के तुगलकी फरमानों के खिलाफ  2015 में सभी वोकेशनल टीचर को एकजुट किया था।  क्यूँकि कंपनियों का टुकड़े – टुकड़े गैंग अपने-अपने टीचर को चेतावनीपूर्ण फरमान सुनते थे। जो  सोचने पर मजबूर करता था कि प्रदेश  का शिक्षा विभाग एक, सभी जिलों के स्कूल एक समान तो फिर कंपनियों का फरमान अलग – अलग क्यों ?
इसी मुद्दे को लेकर  उन्होंने साल दिसम्बर 2016 में भी  एजुकेशन डायरेक्टर के समक्ष  सवाल उठाये थे कि,  वोकेशनल ट्रेनर जब , स्कूल कोऑर्डिनेटर, स्कूल प्रिंसिपल, डाइट कोऑर्डिनेटर , रमसा के  स्टेट वोकेशनल कोऑर्डिनेटर के अधीनस्थ अपनी सेवाएं दे रहे हैं तो कंपनी  कोऑर्डिनेटर रखने की क्या आवश्यकता पड़ी?  ये तो  सिर्फ विभाग पर आर्थिक बोझ है! क्यूँकि वोकेशनल टीचर स्कूल  में वोकेशनल एजुकेशन ग्रहण कर रहे विद्यार्थियों के लिए प्रिंसिपल के सहयोग, मार्गदर्शन और दिशनिर्देशों  से गेस्ट लेक्चर, फील्ड विजिट, इंडस्ट्रियल टूर, इंडस्ट्रियल विजिट और  ऑन जॉब ट्रेनिंग का प्रावधान करते हैं तो फिर कंपनी कोऑर्डिनटोर का क्या काम रह जाता है?  उन्होंने  कंपनी का मनमानी  रवैया समय पर सैलरी नहीं देने  का मुद्दा उठाया था की सामाजिक और पारिवारिक परिवेश में रहने के लिए वेतनमान समय पर  मिलना आवश्यक है। इसीलिए  उन्होंने तंगी हालत में जॉब से रिजाइन देकर बाहरी राज्य का रुख किया था।
क्यूँकि वेतन भुगतान अधिनियम 1936 के तहत, हर कंपनी को पिछले महीने का वेतन अगले महीने की 7वीं या 10वीं तारीख को देने  का प्रावधान है। उन्होंने  कंपनी के खिलाफ  “भुगतान अधिनियम 1936” के तहत  समय पर सैलरी न देने के लिए लेबर कोर्ट में केस किया था। ये बातें कंपनी को न गुजर लगी। वहीं शिक्षा विभाग ने राजनितिक दवाब और मिलीभगत में आकर कंपनी का साथ दिया। जो की शिक्षा विभाग का पक्षपात,  गैर जिम्मेदाराना, अनुचित, प्रदेश विरोधी व्यवहार था। शिक्षा विभाग पर ये मुहावरा स्टिक बैठता है “हमें  तो अपनों ने लुटा गैरों में कहां दम था, अपनी कश्ती वहां डूबी जहां पानी कम था”  उन्होंने कहा कि हुनरमंद   इंसान दुनिया के किसी भी कोने में चला जाए उसकी हर जगह कदर होती है और इस (अपनी ओर इशारा करते हुए सुमन प्रजापति) हुनर को परखने की परख आँखों पर  चंद  खनकते सिक्कों की चमक से धृतराष्ट्र  बने  शिक्षा विभाग के पास नहीं थी । जो की शिक्षा विभाग के लिए दुर्भाग्य पूर्ण था।
गौरतलब है कि  उन्हें  विद्यालय में विद्यार्थियों को नवाचार और  विश्वस्तरीय टेक्नोलॉजी  से सिखाने के उत्कृष्ट कार्य के लिए  बेस्ट टीचर अवार्ड से सम्मनित किया जा चूका है। उन्होंने सोमवार शाम को वोकेशनल टीचर एसोसिएशन के प्रधान अश्वनी से फोन पर बात करके हालत का जायजा लिया।