शिमला/विवेकानंद वशिष्ठ :- शिमला के कालीबाड़ी में सोमवार को हिमाचल किसान सभा एवं हिमाचल सेब उत्पादक संघ के संयुक्त तत्वाधान में कृषि भूमि से किसानों की बेदाखली को रोकने और नियमितीकरण के मुद्दे पर राज्य स्तरीय अधिवेशन का आयोजन किया गया। अधिवेशन में प्रदेश भर से लगभग 400 किसानों ने भाग लिया। किसान सभा और स्वभाव उत्पादक संघ के अलावा अधिवेशन में सीटू, जनवादी महिला समिति, एस.एफ.आई. प्रोग्रेसिव पेंशनर्स संघ, जनवादी नौजवान सभा, दलित शोषण मुक्ति मंच, अखिल भारतीय अधिवक्ता संघ, लघु किसान कल्याण मंच के अध्यक्ष विनोद कुमार, सिरमौर वन अधिकार मंच के गुलाब सिंह, भूमिहीन, आवासहीन संगठन से जग्गन्नाथ भी शामिल रहे।
अधिवेशन का उद्घाटन करते हुए अखिल भारतीय सेब उत्पादक संघ के राष्ट्रीय संयोजक राकेश सिंघा ने किसानों–बागवानों सहित उनकी भूमि और कृषि को प्रभावित करने वाले कानूनों पर चर्चा की। उन्होंने मुख्यतः भारतीय वन अधिनियम 1927, वन संरक्षण अधिनियम 1980 और वनाधिकार अधिनियम 2006 पर चर्चा करते हुए कहा कि इन कानूनों में कुछ ऐसी बातें हैं जिन्हें वर्तमान परिप्रेक्ष्य में किसानों के हितों में संशोधित करने की आवश्यकता है। इसके लिए दृढ राजनैतिक इच्छाशक्ति और किसानों के प्रति सरकारों की संवेदनशीलता की ज़रूरत है। उन्होंने कहा कि प्रदेश सरकार सर्वोच्च न्यायालय में किसानों का मज़बूत पक्ष नहीं रख पाई अन्यथा किसानों को राहत मिल सकती थी।
अधिवेशन में सेब उत्पादक मंच के संयुक्त सचिव संजय चौहान ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय के बाद जो स्थिति पैदा हुई है उसके सन्दर्भ में आगामी रणनीति बनाने की ज़रूरत है।
हिमाचल किसान सभा के राज्याध्यक्ष डॉ. कुलदीप सिंह तंवर ने अधिवेशन में प्रस्ताव रखा जिसमें आगामी डेढ़ महीने में जिला, उपमंडल, खण्ड व तहसील स्तर तक अधिवेशनों का आयोजन किया जाएगा। 11 फरवरी को जिला से लेकर तहसील स्तर तक राज्य और केंद्र सरकार को ज्ञापन दिए जायेंगे। इसके अलावा आगामी मानसून सत्र के अवकाश के दौरान प्रदेश के हज़ारों किसान–बागवान सचिवालय मार्च करेंगे। जिसमें इन मांगों पर बात की जाएगी-
1. सभी राजस्व जमाबंदियों में जहां हिमाचल प्रदेश सरकार के स्वामित्व का उल्लेख है, लेकिन भूमि किसानों के कब्जे में है और भूमि का प्रकार गैर-वन भूमि है, उन्हें कब्जाधारियों के पक्ष में म्यूटेट किया जाए।
2. सरकार द्वारा दिए गए नौतौड़ के सभी मुद्दों का समाधान विशेष म्यूटेशन करके किया जाए।
3. 2023 की प्राकृतिक आपदा में जिन किसानों के घर तबाह हो गए थे, उन्हें उसी आधार पर मुआवजा दिया जाए, जैसा कि 2023 में वन संरक्षण अधिनियम में किए गए संशोधन की धारा 1ए के तहत प्रावधान है।
4. “तबादला” नीति को पुनः लागू किया जाए, जहां वन भूमि पर कब्जे वाले किसान को कृषि भूमि के समकक्ष माप में भूमि का आदान-प्रदान किया जाए।
5. 2024 के शीतकालीन विधानसभा सत्र में नियम 102 के तहत पारित प्रस्ताव को शीघ्र लागू किया जाए और इस बीच उस भूमि की पहचान की जाए जो बादल फटने, बाढ़, भूस्खलन, ग्लेशियर, भूकंप, भूमि क्षरण और अन्य प्राकृतिक आपदाओं के कारण खत्म हो गई हैं।
6. उन भूमि कब्जाधारियों को मालिकाना हक सौंपा जाए, जिन्हें “खुदरा-ओ-दरख्तान मलकीयत सरकार” के रूप में वर्गीकृत किया गया है, जहां वन क्षेत्र 4 हेक्टेयर से कम है।
7. सिरमौर में लागू शामलात भूमि नियमों में संशोधन करके जहां 5 बीघा से कम भूमि वाले किसानों को मौजूदा पटवार सर्कल के अनुसार उपलब्ध भूमि के आधार पर ज्यादा भूमि दी जाए ताकि लोगों को सामाजिक न्याय मिल सके।
8. चकोतेदारों को मालिकाना अधिकार देने के सभी लंबित मामलों का तुरंत समाधान किया जाए।
प्रस्ताव सर्वसम्मति के पारित किया गया।
अधिवेशन के समापन पर किसान नेता डॉ. ओंकार शाद ने कहा कि 2015-16 के दौरान प्रदेश सरकार ने भूमि नियमितीकरण के लिए संकल्प प्रस्ताव पारित तो किया और हालफनामा भी दिया लेकिन समाधान की दिशा में कोई कदम नहीं उठाया। उन्होंने कहा कि किसानों को समझना चाहिए कि ये किसान हितैषी सरकारें नहीं हैं। ये केवल किसानों को बार-बार गुमराह करने का काम करती हैं इसलिए अपनी मांगों के हाल ले लिए किसानों को मज़बूत संगठन बना कर संघर्ष करना होगा।