


शिमला/विवेकानंद वशिष्ठ :- माननीय हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय में होम गार्ड वेलफेयर एसोसिएशन द्वारा दायर याचिका CWP No. 4526/2025 पर सुनवाई हुई। यह याचिका राज्य सरकार द्वारा एसोसिएशन को मान्यता न देने और रजिस्ट्रार द्वारा पंजीकरण से इनकार किए जाने के खिलाफ दायर की गई है।

हिमाचल हाईकोर्ट में सुनवाई के पश्चात मीडियाकर्मियों से संवाद करते हुए होम गार्ड वेलफेयर एसोसिएशन, हिमाचल प्रदेश के लीगल एडवाइज़र अभय कांत मिश्रा, अधिवक्ता, सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया, नई दिल्ली ने बताया
राज्य सरकार को पूर्व में कई बार उत्तर दाखिल करने का अवसर दिया गया था। लेकिन उत्तर प्रस्तुत न किए जाने पर माननीय न्यायालय ने स्पष्ट नाराज़गी प्रकट की और कहा कि यह राज्य और विभाग का आख़िरी अवसर होगा।
अब से तीन सप्ताह के भीतर यदि उत्तर दाखिल नहीं किया गया, तो राज्य का उत्तर दाखिल करने का अधिकार समाप्त मान लिया जाएगा। यह निर्देश न केवल न्यायिक अनुशासन का प्रतीक है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि अदालतें अब सरकार की ढिलाई को और अधिक सहन नहीं करेंगी।
यह मामला केवल एक संघ के पंजीकरण तक सीमित नहीं है, बल्कि यह हिमाचल के हजारों होम गार्ड जवानों के सम्मान, अधिकार और पहचान की लड़ाई है। सरकार जब सुविधाएं देने से इनकार करती है, तो कहती है होमगार्ड स्वयंसेवक हैं।
लेकिन जब जवान संगठन बनाकर न्याय की आवाज़ उठाते हैं, तो कहा जाता है होमगार्ड सरकारी सेवक हैं, इसलिए अनुमति नहीं।
यह विरोधाभासी और सुविधाजनक दोहरा रवैया अब अधिक दिन नहीं चलेगा।
हमारा संविधान प्रत्येक नागरिक को अनुच्छेद 19(1)(c) के अंतर्गत संगठन बनाने का मौलिक अधिकार देता है। यह अधिकार होम गार्ड्स से नहीं छीना जा सकता।
यह लड़ाई न किसी पद की है, न किसी राजनीति की।यह लड़ाई है उन लाखों ‘खाकी वर्दी’ वालों के आत्मसम्मान की, जो हर आपदा में सबसे पहले खड़े होते हैं, लेकिन अपने अधिकारों के लिए सबसे आखिर में सुने जाते हैं।
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