केरल ने साहित्य जगत को दिया ज्ञान का विपुल भंडार, जानें मलायलम के 10 बड़े कवि और लेखकों के बारे में

(अनामिक अनु/Anamika Anu)
केरल चौदह जिलों वाला एक छोटा-सा राज्य है जो विपुल प्राकृतिक संपदा और समृद्ध साहित्य के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध है. केरल एक ऐसा राज्य है जहां मुस्लिम लीग, कम्युनिस्ट पार्टी, इंडियन नेशनल कांग्रेस सहित सभी पार्टियों की अपनी-अपनी ट्रेड यूनियन हैं. यह एक ऐसा राज्य है जहां मारन, मरूदा जैसे देवताओं की पूजा होती रही है, जहां पलियक्करा का प्राचीन चर्च है, जहां पुवार के जंगलों में जलकौवे हैं, जहां कोनेरा का व्यस्त बाज़ार है, जहां भीमापल्ली की गुलाबी मस्जिद है, जहां अय्यन काली और नारायण गुरु जैसे समाज सुधारक हुए हैं, जहां कोच्चि फोर्ट के यहूदियों की रहस्यमयी सुंदर घरों वाली गलियां हैं, जहां चार अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे हैं, जहां वर्कला और कोवलम का सुंदर समुद्री तट है‌, जहां पेरियार और पम्पा जैसी नदियां बहती हैं, जहां की बहुत बड़ी जनसंख्या प्रवासी है. नदी, ताल, पोखर, समंदर, पहाड़, पठार, मैदान वाले इस राज्य में प्रार्थना स्थल से लेकर रेस्तरां तक की कोई कमी नहीं है. कमी तो शिक्षा में भी नहीं है. केरल जिस एक बात के लिए लिए सबसे अधिक प्रसिद्ध है वह है यहां का समृद्ध साहित्य, जो दुनियाभर में बड़े चाव से पढ़ा जाता रहा है. आज हम बात करेंगे केरल के दस चर्चित साहित्यकारों की.

वल्लत्तोल नारायण मेनन
‘कला और नैतिकता में से यदि भगवान मुझे किसी एक को चुनने के लिए कहे तो मैं बिना किसी हिचकिचाहट के कला को चुगूंगा.’ ऐसा कहने वाले आधुनिक मलयालम कविताओं की त्रिमूर्तियों में से एक वल्लत्तोल नारायण मेनन का जन्म 16 अक्टूबर, 1878 में मल्लपुरम जिले में हुआ था. उनकी कविताओं में परंपरा, देशप्रेम और समाज सुधार की भावना कूट-कूट कर भरी थी. केरल कलामंडलम के संस्थापकों में से एक वल्लत्तोल नारायण मेनन ने कथकली के पुनरुत्थान में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी. आम आदमी की उम्मीद, उमंग, विश्वास, अधिकार और आकांक्षाओं के इस कवि को कोच्चिन के महाराजा द्वारा ‘कविसर्वभौमन’ की उपाधि से सम्मानित किया था.

साहित्य,भाषा, दर्शनशास्त्र, तर्कशास्त्र के ज्ञाता और कला मर्मज्ञ वल्लत्तोल नारायण मेनन ने बारह वर्ष की अल्पायु से ही कविता लिखनी शुरू कर दी थी. उनकी महत्वपूर्ण कृतियों में ‘चित्रयोगम’, ‘गंगापति’, ‘बंधनस्थानया अनिरुद्धन’, ‘मैग्डालाना मरियम’ आदि हैं.

उल्लूर एस. परमेश्वर अय्यर
कवि, लेखक, प्रशासक, इतिहासकार और दर्शनशास्त्र के विद्यार्थी उल्लूर एस. परमेश्वर अय्यर का जन्म 6 जून, 1877 को चंगेश्वरी में हुआ था. उनके समृद्ध शब्दकोश में संस्कृतनिष्ठ शब्दों की बहुलता रही. ‘उमाकेरलम’ लिखकर उन्होंने मलयालम कविताओं के इतिहास में नया अध्याय जोड़ दिया. उन्होंने ‘केरला साहित्य चरित्रम’ पांच खंडों में लिखकर मलयालम भाषा, संस्कृति और साहित्य पर प्रकाश डाला. परमेश्वरन अय्यर ने ‘रामचरितम’ और ‘दूतवाक्यम’ जैसे प्राचीन ग्रंथों का गहन अध्ययन किया था.

‘उमाकेरलम’, ‘केरल साहित्य चरित्रम’, ‘कर्णभूषणम मणिमंजूषा’, ‘तरंगिणी’, ‘अरूणोदयम’, ‘भक्तिदीपिका’, ‘पिंगाला’, ‘चित्रशाला’ आदि उल्लूर एस. परमेश्वर अय्यर की महत्वपूर्ण कृतियां हैं.

जी. शंकर कुरुप
प्रथम ज्ञानपीठ पुरस्कार के विजेता जी. शंकर कुरुप का जन्म 3 जून, 1901 को मध्य केरल के नायत्तोह गांव में हुआ था. विलक्षण मेधाशक्ति वाले जी. शंकर कुरुप को आठ वर्ष की बाल्यावस्था में ही ‘अमरकोश’ और ‘सिद्धरूपम’ कंठस्थ हो चुका था. 1963 में केंद्रीय साहित्य अकादमी और 1965 में ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित शंकर कुरुप का 1975 में देहावसान हो गया. जी. शंकर कुरुप ने बीस से अधिक कविता संग्रहों का सृजन किया. तीन नाटक की पुस्तकें लिखीं.उन्होंने बाल साहित्य और निबंध भी लिखें. ‘विश्वदर्शनम’,’ओड्डाकुझल'(बांसुरी), ‘जीवनसंगीतम’, ‘मधुरम सौम्यम दीप्तम’, ‘संध्यारागम’, ‘कविता पर्वम’, ‘स्वप्ना सौधम’, ‘धर्मरश्मि’, ‘पूजापुष्पम’ आदि उनकी चर्चित कृतियां हैं.

अक्कितम अच्युतन नंबूथिरी
वेदों के अध्येता, नंबूदरी ब्राह्मणों के जीवन में सुधार और जातिप्रथा के विरोध में खड़े अक्कितम अच्युतन नंबूथिरी का जन्म 18 मार्च, 1926 को पल्लाकाड जिले में हुआ था. संस्कृत, ज्योतिष और संगीत में पारंगत अक्कितम अच्युतन नंबूथिरी को केरल साहित्य अकादमी, केंद्रीय साहित्य अकादमी, ज्ञानपीठ पुरस्कार और पद्मश्री से सम्मानित किया गया. बलिदर्शनम, स्पर्शमणिक्ल, मानस पूजा, अमृतघाटिकम, प्रतिकार देवता, मधुविदु, देशसेविका, निमिषाक्षेत्रम, इरुपाथम और नूतनदिंते इथिहासम उनकी प्रमुख कृतियां हैं. वह पालयम सत्याग्रह से भी जुड़े हुए थे.

तकषी शिवशंकर पिल्लै
17 अप्रैल, 1912 को एलैप्पी से बीस किलोमीटर दूर तकषी गांव में जन्मे तकषी शिवशंकर पिल्लै ने तिरुवनंतपुरम के विधि महाविद्यालय से विधि की शिक्षा प्राप्त की थी. तकषी शिवशंकर पिल्लै की पहली कहानी 1929 में और पहला उपन्यास ‘त्यागत्तिनु प्रतिफलम’ 1934 में प्रकाशित हुआ. इसके बाद उन्होंने पतित पंकजम, तोट्टियुटे मकन् जैसे उपन्यास लिखे. 1957 में उनके उपन्यास ‘चेम्मीन’ के लिए उन्हें केंद्रीय साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया. चेम्मीन उपन्यास पर बनी फिल्म को ‘राष्ट्रपति स्वर्ण कमल’ से सम्मानित किया गया. 1965 में उनकी किताब ‘एण्णिप्पटिकल’ के उन्हें लिए केरल साहित्य अकादमी दिया गया. 1974 में उन्हें सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार से सम्मानित किया गया. 1980 में उन्हें उनकी महत्वपूर्ण कृति ‘कॅयर’ के लिए उन्हें ‘वायलार पुरस्कार’ मिला. उनके अभूतपूर्व साहित्यिक योगदान के लिए 1984 में उन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया.

कुमारन आशान
गणित, संस्कृत, तर्कशास्त्र के ज्ञाता महाकवि कुमारन आशान का जन्म तिरुवनंतपुरम में हुआ था. वे समाज सुधारक, संपादक और एक उम्दा साहित्यकार थे. केरल के पुनर्जागरण काल के सबसे उम्दा कवियों में उनकी गिनती होती थी. वे केरल की समाज सुधारक संस्था ‘श्री नारायण धर्म परिपालन योगम’ के लंबे समय तक सचिव रहे. कुमारन आशन नारायण गुरु के शिष्य थे. नारायण गुरु केरल के बहुत बड़े समाज सुधारक थे. कुमारन आशान एक युग प्रवर्तक कवि थे. उन्होंने मलयालम कविताओं में कई तरह के नवाचार किये. कुमार आशान ने मलयलालम कविता की दार्शनिक धारा में नैतिकता,प्रेम और नया सुर जोड़ा. उनका जन्म 12 अप्रैल, 1873 को हुआ था. वीणापूव, चांडाल भिक्षुकी, नलिनी, नीला, करूणा, प्ररोधनम उनकी प्रमुख कृतियां हैं. कुमार आशान की मृत्यु 16 जनवरी, 1924 को नदी में डूबने से हुई थी. कुमार आशान की पत्नी का नाम भानुमती अम्मा था.

एस. के. पोट्टेक्काट्ट
अपने यात्रा वृत्तांतों के लिए प्रसिद्ध एसके पोट्टेक्काट्ट का जन्म 14 मार्च, 1913 को कालिकट में हुआ था. एसके पोट्टेक्काट्ट की पहली कहानी उनके छात्रजीवन में जब छपी तब शायद ही कोई नहीं जानता था कि ‘राजनीति’ कहानी लिखने वाला यह विद्यार्थी एक दिन साहित्य और राजनीति, दोनों में अपनी महत्वपूर्ण उपस्थिति दर्ज करेगा. गहरे सामाजिक बोध और दायित्व के साथ लेखन करने वाले पोट्टेक्काट्ट ने साहित्य जगत को कई महत्वपूर्ण कृतियां दी हैं. इनमें नंदनप्रेमम, विषकन्या, कपिड़िकलुडे नाटिल्ल, इन्दे यूरोप, ओरु तिरुविंटे कथा, ओरु देशातीन्थे कथा, प्रेमशिक्षा,मुदुपदम, बालिकादेवी, प्रेमशिक्षा, करामवु, काबिना, भारतपुजाआयुध मक्काल आदि हैं.

वायक्कम मोहम्मद बशीर
मलयालम साहित्य में बशीर अपनी अपरंपरागत भाषा शैली के लिए जाने जाते रहे हैं. बदहाल आर्थिक स्थिति को संभालने की हर संभव कोशिश में विफल रहे बशीर ने मानसिक कष्टों को पार कर अद्भुत साहित्य की रचना की जिसमें उनके यायावरी और कठिन जीवन का अक्स तो है ही, साथ ही साथ उनके विपुल साहित्य में हर संताप और पीड़ा की जगहों को विपुल संबोधन भी मिला है. वे समष्टि के दुःख से प्रेरित ऐसा कथाकार था जिसने आम और उपेक्षित लोगों के जीवन की कथा इतने मार्मिक और सशक्त ढंग से लिखी कि मलयालम साहित्य ने बेचैन होकर नई सुबह का स्वप्न देखा. ऐसी सुबह जिसमें उजाला था, जिसमें सत्य और यथार्थ अपने पूरे सौष्ठव के साथ प्रस्तुत था.

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मानसिक परेशानी में लिखा गया उनका उपन्यास पथथुम्मायुदे आदु (पथुम्मा की बकरी) बहुत लोकप्रिय हुआ. 1930 के नमक सत्याग्रह में भाग लेने के लिए पांचवीं कक्षा में जो कदम बढ़ा, वह आजीवन देश की दुर्दशा को देखने के लिए इधर से उधर भटकता रहा.

ओ.एन.वी. कुरुप
कवि ओ.एन.वी. कुरुप का जन्म 27 मई, 1931 को कोल्लम जिले के चावरा में हुआ था. उज्जैनी और स्वयंवरम जैसी कृतियों के रचनाकार कुरुप को 1975 में केंद्रीय साहित्य अकादमी और 1971 में केरल साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया. 2007 में उन्हें ज्ञानपीठ और 2011 में पद्मविभूषण प्रदान किया गया. सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार, आशान पुरस्कार, वल्लत्तोल पुरस्कार और वयलार पुरस्कार से सम्मानित कवि की महत्वपूर्ण कृतियां दाहिक्कुन्न पानपत्रम्, माट्टूविनचट्टडले, नीलक्कण्णुकल, अक्षरं, भूमिक्कुओरु चरमगीतम्, मृगया, अपराह्न, उज्जयिनी स्वयंवरम्, दिनांतम्, कवितयुटे और समान्तर रेखकल शामिल हैं.

एम. टी. वासुदेवन नायर
एम. टी. वासुदेवन नायर का जन्म पालघाट में 1934 में हुआ. 1952 में उनका प्रथम कथा संग्रह प्रकाशित हुआ जिसका नाम था- रक्तम पुरंडा मंथरीगल. पच्चीस वर्ष की अल्पायु में ही एम. टी. वासुदेवन नायर को उनके उपन्यास ‘नालुकेट्टू’ के लिए केरल साहित्य अकादमी से नवाज़ा गया. 1970 में उनके उपन्यास ‘कालम’ के लिए उन्हें केंद्रीय साहित्य अकादमी प्रदान किया गया. पाठकों और आलोचकों, दोनों के द्वारा सराहे जाने वाले कहानीकार, उपन्यासकार, फिल्मकार एम. टी. वासुदेवन नायर को ‘रण्टामुष़म’ के लिए वयालार पुरस्कार से सम्मानित किया गया.

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