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ससुराल में जीते लेकिन घर में हारे मुख्यमंत्री सुक्खू

हमीरपुर/विवेकानंद वशिष्ठ : –  एक बार फिर से प्रदेश के हमीरपुर जिला ने अपने ही सी.एम. के साथ विश्वासघात किया है। हमीरपुर में 3 चुनाव थे जिनमें से 2 पहले तो एक उपचुनाव अब हुआ है। इन 3 में से बड़सर और हमीरपुर के लोगों ने अपने ही जिला के सी.एम. के प्रति विरोध में वोट देते हुए एक तरीके से सी.एम. ओहदे को नकार दिया है।

 

यानी जिस जिला का सी.एम. वहीं के लोगों का अपने ही सी.एम. के प्रति विश्वास न होना इतिहास के पन्नों में दर्ज हुआ है। यह चुनावी विश्वासघात पहली बार नहीं हुआ है। अब अपने ही सी.एम. के रूप में मिली सौगात को नकारने का यह दूसरा मौका है। हमीरपुर जिला के लोगों ने 2017 में हमीरपुर को सी.एम. ओहदे से वंचित किया था। उस समय प्रस्तावित मुख्यमंत्री प्रो. प्रेम कुमार धूमल को सुजानपुर क्षेत्र के लोगों ने हरा दिया था।

 

दूसरी बार 2022 के चुनावों में हमीरपुर में 5 में से 4 सीटें र कांग्रेस तो एक आजाद को मिली थी। 14 महीने के बाद ही अपने जिला के सी.एम. से 3 विधायकों ने बगावत कर के दी जिनमें 2 कांग्रेस के तो एक आजाद 2 था। हिमाचल के इतिहास में यह शायद पहला मौका था जब अपने ही जिला के सी.एम. के प्रति घर से ही बगावत और इतनी बड़ी चुनौती मिली हो।

 

यह सी.एम. सुक्खू की असफलता कहें या हमीरपुर के लोगों के अपने ही नेता के खिलाफ बगावत कहें। इतिहास के पन्नों में यह दर्ज होगा कि हिमाचल में हमीरपुर के लोग ऐसे हैं जो नहीं चाहते कि हमीरपुर में मुख्यमंत्री का पद बरकरार रहे। इस उपचुनाव के नतीजे के बाद कांग्रेस की सीटें घटकर 3 रह गईं। सुजानपुर की जनता ने जरूर सी.एम. का समर्थन किया। जो पहले भूल उन्होंने की थी उसमें सुधार तो किया लेकिन हमीरपुर और बड़सर का जनमत सी. एम. के खिलाफ हुआ।

 

यहां तक कि लोकसभा चुनावों में भी सी.एम. के अपने गृहक्षेत्र नादौन में ही लोगों ने कांग्रेस का समर्थन नहीं किया और भाजपा को तरजीह दी। हमीरपुर में अपना सी.एम. का नारा पूरी तरह से फेल हुआ है। 2-2 मौके ऐसे आए जब यहां की जनता ने अपने ही नेता को अस्वीकार कर दिया।