शिमला/विवेकानंद वशिष्ठ :- सैहब सोसाइटी वर्करज़ यूनियन सम्बन्धित सीटू के बैनर तले सैंकड़ों सैहब, आउटसोर्स व सफाई कर्मियों ने अपनी मांगों को लेकर कालीबाड़ी हॉल शिमला में जनरल हाउस का आयोजन किया। जनरल हाउस ने 2 व 3 अगस्त को डीसी ऑफिस शिमला स्थित नगर निगम कार्यालय के बाहर जोरदार प्रदर्शन का निर्णय लिया है। जनरल हाउस ने निर्णय लिया है कि 15 अगस्त के बाद मजदूर अपनी मांगों को लेकर बेमियादी आंदोलन शुरू करेंगे। जनरल हाउस में सीटू प्रदेशाध्यक्ष विजेंद्र मेहरा, जिला सचिव रमाकांत मिश्रा, रंजीव कुठियाला, विवेक कश्यप, यूनियन अध्यक्ष जसवंत सिंह, महासचिव ओमप्रकाश गर्ग, कोषाध्यक्ष नरेश, सलाहकार पाला राम मट्टू, सुनील, योगेश, भरत, पवन, नरेंद्र, अमित भाटिया, रूपा, पूनम, शारदा, देवी सिंह, सूरत राम, नरेंद्र, राकेश, राहुल, शिव राम, बूटा राम, विक्रम, दिगम्बर, मनोज, अजित, चंदू लाल, दिनेश, धर्म चंद,नीरज, ललित, दलविंद्र, मदन, इंद्र, प्रेम, राजीव, खूब राम, अरविंद आदि शामिल रहे।
सीटू प्रदेशाध्यक्ष विजेंद्र मेहरा, सचिव रमाकांत मिश्रा, यूनियन अध्यक्ष जसवंत सिंह व महासचिव ओमप्रकाश गर्ग ने जनरल हाउस को सम्बोधित करते हुए कहा कि अगर सैहब सोसाइटी का निजीकरण अथवा आउटसोर्स करने की कोशिश की गई तो मजदूर भविष्य में बेमियादी हड़ताल पर चले जाएंगे व शिमला शहर में कार्य पूरी तरह ठप्प कर देंगे। उन्होंने हैरानी व्यक्त की है कि नगर निगम प्रशासन सैहब के बाय लॉज़ के खिलाफ कार्य कर रहा है व सैहब के कार्य की आउटसोर्सिंग करने की साज़िश रच रहा है। उन्होंने कहा कि जो ढाई करोड़ रुपये नगर निगम घरों की मैपिंग हेतु क्यू आर कोड स्कैनिंग के लिए खर्च करना चाहता है उतने पैसे में 150 अतिरिक्त मजदूरों की भर्त्ती हो सकती है जिस से शहर को और ज़्यादा स्वच्छ रखने में मदद मिलेगी व कार्यरत मजदूरों पर काम का बोझ घटेगा। इतने पैसे से सभी सैहब व आउटसोर्स कर्मियों को तीन वर्ष तक 15 हज़ार रुपये बोनस दिया जा सकता है। यह सब कमीशनखोरी व ठेकेदारी प्रथा को बढ़ाने के उद्देश्य से किया जा रहा है। नगर निगम प्रशासन सरकारी पैसे का दुरुपयोग करना चाहता है जिसे सहन नहीं किया जाएगा। उन्होंने कहा कि सैहब मजदूरों व सुपरवाइजरों का भारी आर्थिक व मानसिक शोषण हो रहा है। उन्होंने कहा कि हर महीने सैंकड़ों सैहब व आउटसोर्स कर्मियों का वेतन भुगतान समय पर नहीं किया जा रहा है जोकि वेतन भुगतान अधिनियम 1936 का उल्लंघन है।
उन्होंने मांग की है कि सैहब वर्करज़ को नियमित कर्मचारी घोषित किया जाए। उन्हें 15वें भारतीय श्रम सम्मेलन, सुप्रीम कोर्ट के सन 1992 के आदेश, सातवें वेतन आयोग की जस्टिस माथुर की सिफारिशों व 26 अक्तूबर 2016 के माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेश अनुसार 26 हज़ार वेतन दिया जाए। उन्हें अतिरिक्त कार्य का अतिरिक्त वेतन दिया जाए। उन्हें कानूनी रूप से 39 छुट्टियां दी जाएं। सैहब में आउटसोर्स में कार्यरत कर्मियों को सैहब के अंतर्गत लाया जाए व उन्हें समय पर वेतन दिया जाए। सैहब कर्मियों को 4- 9 – 14 का लाभ निरन्तर नियमित रूप से दिया जाए। सुपरवाइजरों व मजदूरों के लिए पदोन्नति नीति बनाई जाए। उनकी ईपीएफ की बकाया राशि उनके खाते में जमा की जाए। उनसे अतिरिक्त कार्य करवाना बन्द किया जाए। उन्होंने मांग की है कि सैहब एजीएम की बैठक तुरन्त बुलाई जाए व सैहब कर्मियों की मांगों को पूर्ण किया जाए।