भगवान श्री कृष्ण जी ने गीता में कहा कि मैं ही सर्वत्र हूं 

श्री कृष्णो उवाच :-   जीवों में , मैं आत्मा हूं
तेजस्वियों में सूर्य मैं हूं। वेदों में सामवेद मैं हूं, राजाओं में इन्द्र मैं हूं, पर्वतों में सुमेरु मैं हूं, नागों में वासुकी मैं हूं, पुरोहितों में बृहस्पति मैं हूं, सेनानायकों में कार्तिकेय मैं हूं,  जलाशयों के समुद्र मैं हूं, ऋषियों में भृगु मैं हूं,राक्षसों में मारीच मैं हूं, वृक्षों में पीपल मैं हूं, गजों में एरावत मैं हूं, मनुष्यों में राजा मैं हूं, पितरों में अर्यमा मैं हूं, मासों में मार्गशीर्ष मैं हूं और ऋतुओं में बसंत मैं ही हूं।

 

 

अर्थात इस संसार में जितनी भी कांतिमान चीजें हैं वे सब मुझसे ही हैं। मैं सृष्टि का जनक बीज हूं और हर प्राणी का आधार हूं।

राधे राधे

अध्याय 10 श्लोक 40
श्रीमद्भगवद्गीता।