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सिख पंथ के संस्थापक एवं प्रथम गुरू नानक देव जी के प्रकाश पर्व पर पुष्पांजलि अर्पित करते हुए विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ता।अभाविप

हिमाचल/विवेकानंद वशिष्ठ :-    अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय इकाई द्वारा महान संत, सिख पंथ के संस्थापक,विश्व को समता, सद्भावना, सदाचार और बंधुत्व का संदेश देने वाले सिख पंथ के प्रथम गुरु श्री गुरु नानक देव जी महाराज के प्रकाश पर्व पर उन्हें पुष्पांजलि अर्पित की।

हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय इकाई मंत्री आशीष शर्मा ने बताया की इस वर्ष गुरु नानक देव जी की जयंती 555वीं जयंती मनाई जा रही है गुरु नानक देव जी सिख धर्म के पहले गुरु हैं। गुरु नानक देव का जन्म 15 अप्रैल 1469 को तलवंडी ननकाना साहिब में हुआ था। लगभग 551 साल पहले, पहले सिख गुरु का जन्म इसी दिन लाहौर के पास राय भोई दी तलवंडी नामक गांव में हुआ था, जो अब पाकिस्तान में आता है।

 

*महान संत, सिख पंथ के संस्थापक,विश्व को समता, सद्भावना, सदाचार और बंधुत्व का संदेश देने वाले सिख पंथ के प्रथम गुरु श्री गुरु नानक देव जी महाराज जी ने मानवजाति की एकता को बढ़ावा दिया। वह इतिहास में सबसे अधिक यात्रा करने वाले लोगों में से एक थे। भारत में गुरु नानक के समय महिलाओं को बहुत कम अधिकार प्राप्त थे।
विधवाओं को अक्सर जिंदा जला दिया जाता था और उन्हें दोबारा शादी करने की अनुमति नहीं थी। गुरु नानक देव जी ने इस भेदभाव के खिलाफ प्रचार किया और महिलाओं के सम्मान को बेहतर बनाने की कोशिश की।श्री गुरु नानक देव जी महाराज ने समाज को एकजुट कर सन्मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी। उनके उच्च आदर्शों से हम प्रेरणा प्राप्त कर, अपने देश और धर्म के लिए निरंतर कार्य करते रहेंगे।

नानक देव जी अपने समय के महान समाज-सुधारक थे l नानक देव जी ने समाज में व्याप्त आडंबरों, पाखंडों और कुरीतियों का कड़ा विरोध किया l जबरन थोपे जाने वाले रीति–रिवाजों जैसे सतीप्रथा, बलिप्रथा,पर्दाप्रथा को उन्होंने अस्वीकृत कियाl वे जबरन धर्मांतरण के भी सख्त खिलाफ थे l उनका मानना था कि सभी प्राणी एक समान हैं और कोई छोटा -बड़ा नहीं है, सभी लोगों को अपने अनुरूप जीवन जीना चाहिए । नानक जी ने मनुष्य की एकता पर जोर दिया क्योंकि एकता में बहुत शक्ति होती है। उन्होंने छोटे -बड़े का भेद मिटाने के लिए लंगर की शुरुआत की थी। लंगर शब्द को निराकारी दृष्टिकोण से लिया गया है, लंगर में सभी लोग एक ही स्थान पर बैठकर भोजन करते हैंl लंगर प्रथा पूरी तरह से समानता के सिद्धांत पर आधारित है, जो आज भी समाज के विभाजित खाई को भरती हैं।प्रेम, सेवा, सत्य और समानता के प्रतीक गुरु नानक देव जी की शिक्षाएं हमें सदैव मानवता की सेवा और सामाजिक समरसता की राह दिखाती हैं। उनके आदर्शों से प्रेरणा लेकर हम सभी मिलकर एक न्यायसंगत और करुणामय समाज का निर्माण करें।