
हिमाचल/विवेकानंद वशिष्ठ :- हिमाचल प्रदेश के सुप्रसिद्ध कथावाचक पंडित सुरेश गौतम के अनुसार
09 नवम्बर 2024 को गोपाष्टमी है।
गौ माता धरती की सबसे बड़ी वैद्यराज भारतीय संस्कृति में गौमाता की सेवा सबसे उत्तम सेवा मानी गयी है, श्री कृष्ण गौ सेवा को सर्व प्रिय मानते हैं शुद्ध भारतीय नस्ल की गाय की रीढ़ में सूर्यकेतु नाम की एक विशेष नाढ़ी होती है जब इस नाढ़ी पर सूर्य की किरणे पड़ती हैं तो स्वर्ण के सूक्ष्म काणों का निर्माण करती हैं , इसीलिए गाय के दूध, मक्खन और घी में पीलापन रहता है , यही पीलापन अमृत कहलाता है और मानव शरीर में उपस्थित विष को बेअसर करता है l

गाय को सहलाने वाले के कई असाध्य रोग मिट जाते हैं क्योंकि गाय के रोमकोपों से सतत एक विशेष ऊर्जा निकलती है गाय की पूछ के झाडने से बच्चों का ऊपरी हवा एवं नज़र से बचाव होता है गौमूत्र एवं गोझारण के फायदे तो अनंत हैं , इसके सेवन से केंसर व् मधुमय के कीटाणु नष्ट होते हैं गाय के गोबर से लीपा पोता हुआ घर जहाँ सात्विक होता है वहीँ इससे बनी गौ-चन्दन जलाने से वातावरण पवित्र होता है इसीलिए गाय को पृथ्वी पर सबसे बड़ा वैद्यराज माना गया है ,सत्पुरुषो का कहना है की गाय की सेवा करने से गाय का नहीं बल्कि सेवा करने वालो का भला होता है।
आँवला (अक्षय) नवमी है फलदायी

10 नवम्बर 2024 रविवार को आँवला नवमी है। भारतीय सनातन पद्धति में पुत्र रत्न की प्राप्ति के लिए महिलाओं द्वारा आँवला नवमी की पूजा को महत्वपूर्ण माना गया है। कहा जाता है कि यह पूजा व्यक्ति के समस्त पापों को दूर कर पुण्य फलदायी होती है। जिसके चलते कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की नवमी को महिलाएं आँवले के पेड़ की विधि-विधान से पूजा-अर्चना कर अपनी समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए प्रार्थना करती हैं।

आँवला नवमी को अक्षय नवमी के रूप में भी जाना जाता है। इस दिन द्वापर युग का प्रारंभ हुआ था। कहा जाता है कि आंवला भगवान विष्णु का पसंदीदा फल है। आंवले के वृक्ष में समस्त देवी-देवताओं का निवास होता है। इसलिए इसकी पूजा करने का विशेष महत्व होता है।
व्रत की पूजा का विधान

नवमी के दिन महिलाएं सुबह से ही स्नान ध्यान कर आँवला के वृक्ष के नीचे पूर्व दिशा में मुंह करके बैठती हैं।
इसके बाद वृक्ष की जड़ों को दूध से सींच कर उसके तने पर कच्चे सूत का धागा लपेटा जाता है।
तत्पश्चात रोली, चावल, धूप दीप से वृक्ष की पूजा की जाती है। महिलाएं आँवले के वृक्ष की १०८ परिक्रमाएं करके ही भोजन करती हैं।
आँवला नवमी की कथा
वहीं पुत्र रत्न प्राप्ति के लिए आँवला पूजा के महत्व के विषय में प्रचलित कथा के अनुसार एक युग में किसी वैश्य की पत्नी को पुत्र रत्न की प्राप्ति नहीं हो रही थी। अपनी पड़ोसन के कहे अनुसार उसने एक बच्चे की बलि भैरव देव को दे दी। इसका फल उसे उल्टा मिला। महिला कुष्ट की रोगी हो गई।
इसका वह पश्चाताप करने लगे और रोग मुक्त होने के लिए गंगा की शरण में गई। तब गंगा ने उसे कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को आँवला के वृक्ष की पूजा कर आँवले के सेवन करने की सलाह दी थी।
जिस पर महिला ने गंगा के बताए अनुसार इस तिथि को आँवला की पूजा कर आँवला ग्रहण किया था, और वह रोगमुक्त हो गई थी। इस व्रत व पूजन के प्रभाव से कुछ दिनों बाद उसे दिव्य शरीर व पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई, तभी से हिंदुओं में इस व्रत को करने का प्रचलन बढ़ा। तब से लेकर आज तक यह परंपरा चली आ रही है।
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